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Shubhshree mathur

बादल

मैंने ग़लती से

बादलों पर रख दिए

अपने उसूल और आदर्श


अब वो


इतने हल्के है

कि ज़मीन पर

नहीं आ पाते


इतने ऊंचे कि

मैं उन तक

नहीं पहुंच पाती

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